(गीता-27) वो गलती, जो हम करना नहीं चाहते फिर भी हो जाती है || आचार्य प्रशांत, भगवद् गीता पर (2023)

2024-10-05 2

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वीडियो जानकारी: 30.11.23, गीता समागम, ग्रेटर नॉएडा

प्रसंग:
~ हमसे पाप क्यों हो जाता है ?
~ पाप क्या है ? पुण्य क्या है ?
~ अहम् का मूल बंधन क्या है ?
~ आत्मज्ञान का अर्थ क्या है ?
~ पाप - पुण्य का प्रचार क्यों किया गया ?
~ अपनी और दूसरे की भलाई किसमें है ?
~ जो कुछ हम चाहते है वो पाप कैसे बन जाता है ?


~ श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 3, श्लोक 41

तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ।
पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्।।

काव्यात्मक अर्थ :
देखते हो काम से
ना जान कुछ भी पाओगे
ध्यान दो संयम करो
तो सत व मुक्ति पाओगे


संगीत: मिलिंद दाते

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